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📖 उपन्यास: "तुमसे पहले तुमसे बाद"
✍🏻 लेखिका: सायका अजमत
🌸 अध्याय 1: पहली झलक
> "कुछ लोग पहली बार में दिल में बस जाते हैं,
और फिर हर लम्हा... उन्हीं से मुलाक़ात होती रहती है।"
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लखनऊ यूनिवर्सिटी की वो गुलाबी सर्दियां थीं, जब धूप सिर्फ़ तन को नहीं, दिल को भी छूती है।
कॉलेज की लाइब्रेरी की सीढ़ियों पर बैठी ज़ारिन अपने जज़्बातों से लड़ रही थी।
एक तरफ उसकी किताबें थीं, दूसरी तरफ वो चेहरा… जो उसकी सोच से निकल ही नहीं रहा था—आरिज़।
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☕ "तू फिर से खो गई…"
नीलोफ़र, उसकी सबसे क़रीबी दोस्त, उसे गौर से देख रही थी।
"ज़ारिन, तू क्लास में भी गुम रहती है, अब लाइब्रेरी में भी... सब कुछ ठीक है?"
"हाँ सब ठीक है…"
ज़ारिन ने मुस्कराने की नाकाम कोशिश की, लेकिन उसकी आँखों में जो बेचैनी थी, वो छुपी नहीं।
"वो लड़का है ना, हिंदी डिपार्टमेंट वाला… आरिज़..."
ज़ारिन चौंकी नहीं, क्योंकि उसके दिल में आरिज़ का नाम बहुत पहले से लिखा था।
"हम्म… वही..."
उसकी आवाज़ धीमी पड़ गई।
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🌿 आरिज़ की दुनिया
दूसरी तरफ आरिज़… किताबों से घिरा हुआ, लेकिन उसका दिल कहीं और था।
वो शांत लड़का था, बातें कम करता, मगर उसकी नज़रों में एक गहराई थी जो लोगों को खींच लेती थी।
मगर ज़ारिन… वो उसकी नज़रों से नहीं, उसकी ख़ामोशी से जुड़ी थी।
आरिज़ को भी अहसास था कि कोई उसे दूर से देखता है… कोई जो उसके आसपास होने पर थोड़ी ज़्यादा चुप हो जाती है।
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🏫 पुरानी यादें…
कुछ महीने पहले की बात है।
डिबेट कॉम्पिटिशन हो रहा था।
ज़ारिन स्टेज के पीछे खड़ी थी, घबराई हुई।
तभी किसी ने धीरे से कहा:
"साँस गिन कर नहीं ली जाती, उसे महसूस किया जाता है… वैसे ही शब्द बोले जाते हैं।"
ज़ारिन ने पीछे देखा—आरिज़ खड़ा था।
वो पहली मुलाकात थी।
न नज़दीकी थी, न जान-पहचान… सिर्फ़ एक जुमला और एक ख़ामोश एहसास।
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📚 आज की शाम
लाइब्रेरी की खिड़की से हल्की धूप आ रही थी।
आरिज़ वही पुरानी उर्दू नॉवेल ढूँढ रहा था।
वहीं ज़ारिन की उंगलियाँ भी उसी किताब पर पहुँचीं।
दोनों की उंगलियाँ टकराईं…
और कुछ देर के लिए सब कुछ थम गया।
"आप… ये किताब पढ़ना चाह रहे थे?"
ज़ारिन ने हौले से पूछा।
"हाँ… लेकिन लगता है ये किताब भी किसी और की हो गई है…"
आरिज़ ने मुस्कराकर कहा।
ज़ारिन ने किताब उसकी तरफ बढ़ा दी।
"शायद आप इसे ज़्यादा अच्छे से समझेंगे…"
आरिज़ ने किताब ले ली, लेकिन जाने क्यों उसकी उंगलियाँ थोड़ी देर तक ज़ारिन की उंगलियों से जुड़ी रहीं।
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🌙 उस रात ज़ारिन की डायरी
> "आज पहली बार हमारी उंगलियाँ मिलीं…
शायद इस कहानी का पहला पन्ना खुला है।
मेरी ख़ामोशी अब उसकी मुस्कान में पढ़ी जा रही है।
और मोहब्बत… वो तो जैसे हर किताब के बीच से झाँकने लगी है।"
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🍂 कॉलेज फेस्ट की घोषणा
कुछ दिनों बाद यूनिवर्सिटी में सालाना "साहित्य संध्या" होने वाली थी।
ज़ारिन को "शायराना ख़्यालात" सेगमेंट में चुना गया।
और... आरिज़ को भी।
जब नाम अनाउंस हुए, तो नज़रें फिर मिलीं—इस बार थोड़ा और देर तक।
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❤️ धीरे-धीरे...
कॉरिडोर में चुपचाप चलना
क्लास से बाहर निकलते वक़्त पीछे मुड़कर देखना
एक-दूसरे की नोटबुक में बेतरतीब लफ्ज़
नीलोफ़र की छेड़खानियाँ
और उस सब के बीच…
एक गहरी मोहब्बत, जो अब सिर्फ़ दिल में नहीं, आँखों में उतरने लगी थी।
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✨ एक शाम और…
छुट्टी के बाद ज़ारिन लाइब्रेरी से बाहर निकल रही थी।
बारिश की हल्की बूंदें गिरने लगीं।
उसे छाता निकालने का वक़्त नहीं मिला।
तभी पीछे से एक छाता उसके सिर पर आ गया।
"बीमार हो जाओगी ज़ारिन।"
वो मुड़ी।
आरिज़ था… पहली बार उसने उसका नाम लिया था।
"आपको… मेरा नाम याद है?"
"तुम्हारा नाम तो बरसात में भी धूप की तरह याद रहता है…"
उसने कहा, और छाता पकड़ाया।
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📓 डायरी का आख़िरी हिस्सा
> "अब लगता है… कुछ कहने की ज़रूरत नहीं।
वो हर बात… मेरी आँखों से समझता है।
ये मोहब्बत शायद कह देने वाली नहीं…
बस… महसूस करने वाली है।"
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💖 अगला अध्याय: "ख़्वाबों में तेरा नाम"
कॉलेज फेस्ट में ज़ारिन और आरिज़ का शायरी से भरा स्टेज मोमेंट
पहली बार आरिज़ का गुज़रा हुआ कोई राज़
एक नज़दीकी… और एक डर
और एक बात… जो ज़ारिन को उलझा कर रख देगी
क्रमशः---